ज़िन्दगी मे बहोत ऐसे मोड़ आते है जब हमें खुद से मिलना ही पड़ता है। जब हम खुद से मिलते है तब पता लगता है की हम वो करते आ रहे थे जो हम नहीं करना चाहते थे , लेकिन पूरी सिद्दत से करते जा रहे थे। ज़िन्दगी का हर मोड़ हमारे लिए एक सबक होती है, उससे घबराये नहीं , विचलित न हो , धैर्य रखे और सयंम से विश्लेसशन करे कि क्या आप उस परिस्थिति में संतुलित है ?
कुछ हसरते अधूरी ही सही। तुझे न पाना ज़रूरी ही सही। जिन्दा हो के मुरदु के जैसे जी रहे है। उफ़ ! इसमें तेरी मंज़ूरी ही सही।
उसके चेहरे का नूर बता रहा है उसके मेहबूब का दीदार हुवा है जैसे
. आज उस दर्द को सरेआम बयान करू कैसे ? चुप के मोहबत करने पे गुमान था कभी !!
. सुना है गद्दारो की कोई जाट नहीं होती ! वतन से वफादारी निभाए उतनी उसकी औकात नहीं होती ! हम तो शहीदों का नमन करते है जिनके बलिदान के बिना ये धरती अमर नहीं होती !
आज फिर आई है उसकी याद बेचैन करने उनसे कहो अब यही जीने का सहारा है मेरा !
सुनो ! अब ये दिल हम लगाया नहीं करते फ़िज़ूल के बातो में अपना वक़्त जाया नहीं करते ! देखा उसकी महंगी मोहव्बत बिकते हुवे इसलिए अब हर बिकाऊ चीज मुँह लगाया नहीं करते !
ज़माने का डर नहीं एक तुझे पा लेने के बाद ! सुना है मुहबत मुकमल होती है उस दुनिया में !
सोच बदल बदल के तो ये दुर्गति हो गई है कि देशद्रोहीयो को व् शहीद घोषित करने में लग पड़ते है।मैंने कभी इंकार नहि किया है, हम दुर्गा भी ह् और काली भी और धर्म की बात आए तो राम भक्त भी।
पहुंचू मैं जहां भी मेरी बुनियाद रहे तू ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू मैं जहाँ रहूँ जहाँ में याद रहे तू
तुम संस्कारो की बात करते हो मैंने माँ बाप को भी घर से निकलते देखा है । तुम उशुलो की बात करते हो मैने बियहि बेटीयाँ को अपनाने से मना करते देखा है । तुम भरोसे की बात करते हो मैने कोड़ीयो के भाव अपनो को बदलते देखा है।
"जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन" आधुनिक लोकतन्त्र :"नेता द्वारा, नेता के लिए, नेता का शासन"
कोई मुझे बताए ज़रा की लोगो के भावनाओ का क्या मूल्य चल रहा मार्किट में।सुना है टीवी तक नीलामी पहुँच गइ है।भारत के भ्रस्ट युवा को मेरा सलाम लोगों के दुःख बड़े परदे पे दिखा कर इतना बड़ा कर दिया है कि अब धोखे ने दुःख की चादर ओढ़ ली है। बचना नामुमकिन है साहब!
ये जो लोग धोखाधड़ी में अपने कैरीयर बनाने के सोच रहे हैं उनसे एक ही बात बोलना चाहूँगी कि कलmoratorium भी खत्म होगा और लोन का दौर भी! फिर क्या करोगे?
कोई सामान बेचता है! कोई शरीर बेचता है! कोई अपना आईडिया बेचता है! कोई लोगों की भावनाओं को बेचता है! जी हाँ आपकी तरफ ही इशारा है ।
सिक्के और नोटेबंदी ने तो मेरे से दोनों ही हक़ छीन ली है।
लोगों की परेशानियाँ और चुनाव दोनों साथ ही चलते थे। हवा ने रुख बदला है मोरतोरियम और बिहार चुनाव दोनों अलग अलग रास्ते पे है!! ये बिहार चुनाव भी अनोखा है और हमारी सरकार भी जनाब।
कैसे? "नमामि गंगे" फ्लॉप योजना जो न कर पाए ,Covid19 ने खुद ही कर दिया। हम मनुष्य किसी भी काम मे अपना लाभ देखते है।
अवसर न भी हो तभी ये ढूंढ़ लेंगे, लोगों को मूर्ख बनाने में पीएचडी कर के आते है। इलेक्शन इससे अच्छा मुहरत है व् नहीं सकता
एक बात मुझे समझ नहीं आई| जो गरीबो के हक के लिए लड़ते है|वो लड़ते लड़ते अमीर कैसे हो जाते है।सोच रही हो में भी लड़ लूँ बस कोई मार्गदर्शन कर दे मेरा,कुछ तो बेरोजगारी काम हो क्या कभी ऐसा भी वक़्त आएगा जब ये लोन, एजेंट सब रुक जाएगा। देश के अलग मुद्दे पे हमसब की बात होगी, जीडीपी, बेरोजगारी, किसान ,और ये सर का दर्द आरक्षण पे। क्या ये मुद्दे अभी भी देश में जीवित हैं?
कोई उसूल नहीं है, कोई इन्शानियत बची नहीं है। सब वेट कर रहे कब मेरी बारी आएगी तब आवाज़ उठाएंगे । किसी और का दर्द महसूस नहीं हो रहा लेकिन अपना तकिफ सबको फील करवयेगे। गज़ब
तुम संस्कारो की बात करते हो मैंने माँ बाप को भी घर से निकलते देखा है । तुम उशुलो की बात करते हो मैने बियहि बेटीयाँ को अपनाने से मना करते देखा है । तुम भरोसे की बात करते हो मैने कोड़ीयो के भाव अपनो को बदलते देखा है।
आज एक झूठ फिर से सूनी मैंने उससे उसी की जुबानी। जैस वक़्त निकाला हो उसने मुझे देने के लिये । आधुनिक परिभाषा ज़लील वो नहीं जो जो छल करते है । जिनके साथ होती है वो है जलील।
- GAYATRI SHARMA
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